Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 49
________________ (अकल्पनीय द्रव्य से) लिप्त चम्मच विगेरे को पूंछ लीया हो, वह लेवालेवेणं आगार, सब्जि तथा रोटी विगेरे को गृहस्थने (विगइ से) मिश्रित किया (= स्पर्श की हो) वह गिहत्तसंसटेण आगार, पिंडविगइ को उठा ली (= ले ली) हो, वह उक्खित्त विवेगेणं आगार और रोटी विगेरे को किंचित् (विगइ से) मसली हो, वह पडुच्चमक्खिएणं आगार । ॥२७॥ लेवाडं आयामाई इअर सोवीरमच्छ-मुसिणजलं; धोअण बहुल ससित्थं, उस्सेइम इअर सित्थ विणा ॥२८॥ कांजी विगेरे का पानी लेपकृत कहा जाता है। जिससे (उसकी छूटवाला) "लेवेण वा" आगार है । कांजी विगेरे अलेपकृत पानी है, अतः "अलेवेण वा आगार है । उष्ण जल निर्मल जल है, उसकी छूटवाला "अच्छेण वा" आगार है । चाँवल विगेरे का धोयण बहुल कहा जाता है, उसकी छूटवाला "बहुलेवेण वा" आगार है । आटे का धोवन ससित्थ (दाने वाला) होता है, उसकी छूटवाला "ससित्थेण वा" आगार है । और उससे विपरित "असित्थेण वा" आगार है । ॥२८॥ पण चउ चउ चउदुदुविह, छ भक्ख दुद्धाई विगई इगवीसं; ति दुति चउविह अभक्खा , चउ महुमाई विगई बार ॥२९॥ भाष्यत्रयम्

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