Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 47
________________ अर्थात् मिश्र विगइ है । तथा मक्खन और पकवान ये दो पिंड विगइ है। ॥२२॥ पोरिसि सड्ढ-अवडं, दुभत्त निव्विगई पोरिसाई समा; अंगुट्ठ-मुट्ठि-गंठी, सचित्त दव्वाई-भिग्गहियं ॥ २३ ॥ पोरिसी और सार्धपोरिसी के, अवड्ड और पुरिमड्ड के, तथा (दुभत्त =) बिआसने व एकाशन के, (निव्विगइ =) नीवि और विगइ के, अंगुट्ठसहियं मुट्ठिसहियं और गंठि सहियं आदि ८ संकेत प्रत्याख्यान तथा सचित द्रव्यादिक का (= द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से) अभिग्रह, तथा देसावगासिक (इन दोनों के) परस्पर समान आगार हैं । अर्थात् आगारों की संख्या और आगारों के नाम समान हैं । ॥२३॥ विस्सरण-मणाभोगो, सहसागारो सयं मुहपवेसो; पच्छन्नकाल मेहाई दिसि-विवज्जासु दिसिमोहो ॥ २४ ॥ विस्मरण वह अनाभोग, आहार के पदार्थ अकस्मात मुख में प्रवेश करे, वह सहसागर, वर्षा विगेरे से (समय का पता न चलने पर) वह पच्छनकाल, और दिशाओं का फेरफार समझने से दिशामोह आगार समझना चाहिये । ॥२४॥ साहुवयण उग्घाडा, पोरिसि तणु-सुत्थया समाहित्ति; संघाईकज्ज महत्तर, गिहत्थ-बंदाई सागारी ॥ २५ ॥ ४६ भाष्यत्रयम्

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