Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 11
________________ इस प्रकार, नवकार, खमासमण इरियावहिया, शक्रस्तवादि दंडको में और प्रणिधान सूत्रों में दूसरी बार उच्चारण नहीं किये गये सोलह सौ सेंतालीस अक्षर (वर्ण) होते है ||२७|| नव बत्तीस तित्तीसा, तिचत्त अडवीस सोल वीस पया; मंगल ईरिया - सक्कत्थ याईसु एगसीईसयं ॥ २८ ॥ मंगल, इरियावहिया शक्रस्तव आदि में नौ, बत्तीस, तेंतीस तियालीस अट्ठावीस, सोलह, बीस, एक सौ इक्यासी पद है ॥२८॥ अट्ठट्ठ नवट्ठ य अट्ठवीस, सोलस य वीस वीसामा; कमसो मंगल - ईरिया, सक्कत्थयाईसु सगनउई ॥ २९ ॥ क्रमानुसार नवकार, इरियावहिया, शक्रस्तव आदि में आठ, आठ, नव, आठ, अट्ठावीस, सोलह और बीस इस प्रकार कुल सत्तानवे संपदाएँ है ॥२९॥ durg सट्ठि नव पय, नवकारे अट्ठ संपया तत्थ; सग संपय पय तुल्ला, सतरक्खर अट्ठमी दु पया ॥ ३० ॥ नवकार में अडसठ अक्षर, नौ पद, और आठ संपदाएँ है । उसमें सात संपदाएँ पद की तरह की है । और आठवीं सतरह अक्षरों की और दो पदों की है । " नौ अक्षर की आठवी और दो पदवाली छट्ठी (संपदा) इस प्रकार अन्य आचार्य कहते है ||३०|| १० भाष्यत्रयम्

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