Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 20
________________ पडिक्कमणे चेइय जिमण चरिमपडिक्कमण सुअण पडिबोहे; चिइवंदण इअ जइणो, सत्त उ वेला अहोरत्ते ॥ ५९ ॥ ___ मुनिओ को रात्रि और दिन में, प्रतिक्रमण में, दर्शन, गोचरी, संध्या, प्रतिक्रमण, तथा सोने व जागने के समय, इस प्रकार सात बार चैत्यवंदन करने का विधान है ॥५९।। पडिक्कमणो गिहिणोवि हु, सगवेला पंचवेल इअरस्स; पूआसु तिसंझासु अ, होइ ति-वेला जहन्नेणं ॥६० ॥ प्रतिक्रमण करने वाले गृहस्थ को भी सात बार या पांच बार और प्रतिक्रमण नहीं करनेवाले गृहस्थको प्रतिदिन तीन संध्याकाल की पूजा में जघन्य से तीन बार चैत्यवंदन करना चाहिए ॥६०॥ तंबोल पाण भोयण, वाणह मेहुन्न सुअण निट्ठवणं; मुत्तु-च्चारं जूअं, वज्जे जिणनाह-जगईए ॥ ६१ ॥ श्री जिनेश्वर परमात्मा के मंदिर के परिसर में तंबोल पेयपदार्थ पीना खाना, पाँव में चप्पल मोजड़ी आदि पहनकर आना, मैथुन करना, निद्रालेना, थूकना, पेशाब करना, वड़ीनीति(टट्टी), जुआ खेलना निषेध है अर्थात् दस आशातनाओं का निवारण चाहिये ॥६१॥ इरिनमुक्कार नमुत्थुण, अरिहंत थुइ लोग सव्व थुइ पुक्ख; थुइ सिद्धा वेआ थुई, नमुत्थु जावंति थय जयवी ॥६२॥ श्री चैत्यवंदन भाष्य

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