Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 36
________________ अप्पमइ भव्व-बोहत्थं, भासियं विवरियं च जमिह मए; तं सोहंतु गियत्था, अणभिनिवेसी अमच्छरिणो ॥ ४१ ॥ __ अल्पमतिवंत भव्यजीवों को बोध करवाने के लिए (ये गुरुवंदन भाष्य नाम का प्रकरण मैंने (देवेन्द्रसूरि ने) कहा है। लेकिन उसमें मेरे द्वारा कुछ भी विपरीत कहा गया हो (याने मेरे अनजानपन में जो कुछ भूलचूक हुई हो) उस भूलचूक का आग्रहरहित और इर्ष्यारहित ऐसे हे गीतार्थ मुनिओ ! आप शुद्ध करें ॥४१॥ श्री गुरूवंदन भाष्य

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