Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 35
________________ इरिया कुसुमिणुसग्गो, चिईवंदण पुत्ति वंदणा-लोयं; वंदण खामण वंदण, संवर चउछोभ दुसज्झाओ ॥ ३८ ॥ ___ इरियावहिय, कुसुमिण का कायोत्सर्ग, चैत्यवंदन, मुहपत्ति, दो वांदणा, आलोचन, वंदन, खामणावंदन, पच्चक्खाण, चार छोभवंदन, दो आदेश और दो स्वाध्याय यह संक्षेप में प्रातःकालीन गुरुवंदन विधि है ॥३८॥ इरिया चिईवंदण पुत्ति, वंदण चरिम-वंदणा-लोयं; वंदणं खामण चउछोभ, दिवसुस्सग्गो दुसज्झाओ ॥ ३९ ॥ इरियावहिय, चैत्यवंदन, मुहपत्ति, दो वांदणा, दिवस चरिम का पच्चक्खाण, दो वांदणा, आलोचना, दो वांदणा, खामणा, चार छोभवंदन, देवसिय पायच्छितका कायोत्सर्ग और दो आदेशपूर्वक सज्झाय, यह शाम के संदिप्त गुरुवंदन की विधि है ॥३९॥ एयं किइकम्म-विहिं, गँजंता चरण-करण-माउत्ता; साहू खवंति कम्मं, अणेगभव-संचिय-मणंतं ॥ ४० ॥ ___ इस प्रकार पूर्व में कहे अनुसार कृतिकर्म विधि (गुरुवंदन विधि को) को करने वाला एवं चरण करण में (चारित्र व उसकी क्रिया में अर्थात् चरण व करण सित्तरि में) उपयोगवन्त साधु पूर्व भव के (में) एकत्रित किये हुए अनन्त (भवों के) कर्मोको खपाता है (याने मोक्ष जाता है) ॥४०॥ भाष्यत्रयम्

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