Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 42
________________ ईत्तुच्चिय खवणंबिल-निवियाईसु फासुयं चिय जलं तु; सड्ढा वि पियंति तहा, पच्चक्खंति य तिहाहारं ॥ ११ ॥ इस हेतु से ही उपवास, आयंबिल और नीवि विगेरे में श्रावक भी निश्चय (अवश्य) प्रासुक- अचित्त जल पीवे तथा तिविहार का प्रत्याख्यान (उपवासादिक में) करे । ॥११॥ चउहाहारं तु नमो, रतिपि मुणीण सेस तिह-चउहा; निसि पोरिसि पुरिमेगा सणाई सड्डाण दुति-चउहा ॥१२॥ ___ मुनि को नवकारसी का तथा रात्रिका (दिवस चरिम) प्रत्याख्यान चउविहार रूप ही होता है। और शेष (पोरिसि आदि प्रत्याख्यान तिविहार चउविहार रूप दो प्रकार के होते है। तथा श्रावक को तो रात्रि का (दिवस चरिम) और पोरिसि, पुरिमड्ढ. तथा एकाशनादि प्रत्याख्यान दुविहार, तिविहार, चउविहार रूप तीन प्रकार होते है। (नवकारसी का प्रत्याख्यान तो श्रावक को भी चउविहार वाला ही होता है। कारण कि नवकारसी पच्चक्खाण तो गत रात्रि के चउविहार प्रत्याख्यान को कुछ अधिक करने के रुप में कहा है। ॥१२॥ खुहपसम-खमेगागी, आहार व एई देई वा सायं; खुहिओ व खिवई कुटे, जं पंकुवमं तमाहारो ॥ १३ ॥ ____जो अकेला होने पर भी क्षुधा को शांत करने में समर्थ हो, अथवा आहार में आता हो, या आहार का स्वाद देता हो श्री पच्चक्खाण भाष्य ४१

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