Book Title: Bhashya Trayam
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 31
________________ वह साधु (विगेरे) शीघ्र निर्वाण - मोक्ष को प्राप्त करे, अथवा विमान मे वास (वैमानिक देव) प्राप्त करे ||२६|| इह छच्च गुणा विणओ - वयार माणाईभंग गुरुपूआ; तित्थयराण य आणा, सुअधम्मा- राहणा किरिया ॥२७॥ यहाँ (गुरु वंदन से) छ गुण प्राप्त होते हैं, जो इस प्रकार विनयोपचार विनय वही उपचार - आराधना का प्रकार उसे विनयोपचार विनय वही उपचार = आराधना का प्रकार उसे विनयोपचार कहा जाता है । विनयगुण की प्राप्ति होती है । (२) मानभंग अर्थात् अभिमान अहंकार का नाश होता है । (३) गुरु पूआ = गुरु जनो की सम्यक पूजा (सत्कार ) होता है । श्री तीर्थंकर परमात्मा की (४) आज्ञा का आराधन अर्थात् आज्ञा का पालन होता है । ( ५ ) श्रुतधर्म की आराधना होती है । और परंपरा से (६) अक्रिया अर्थात् (७) सिद्धि प्राप्त होती है ||२७|| | = गुरुगुणजुत्तं तु गुरुं, ठाविज्जा अहव तत्थ अक्खाईं; अहवा नाणाई - तिअं, ठविज्ज सक्खं गुरुअभावे ॥२८॥ साक्षात् गुरु की अनुपस्थिति के समय गुरु के ३६ गुण युक्त स्थापना गुरु स्थापना ( अर्थात् गुरु की सद्भूत स्थापना ) अथवा (सद्भूत स्थापना स्थापने का न बन सके तो ) अक्ष ( चंदन अरिया) विगेरे (की असद्भूत स्थापना) अथवा भाष्यत्रयम् ३०

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