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अन्नत्थ इत्यादि बारह और अग्नि पंचेन्द्रिय छेदन, सम्यक्त्व की हानि, और डंख एवमाइ यहाँ से ये चार, इस तरह सोलह आगार है ॥५५॥ घोडग लय खंभाई, मालु-द्धी निअल सबरि खलिण वहू; लंबुत्तर थण संजई, भमुहंगुलि वायस कविठ्ठो ॥ ५६ ॥
अश्व, लता, स्तंभादिक, मंजिल, उद्ध, गाड़ी की बेड़ी भीलडी, लगाम, वधू, लंबावस्त्र, स्तन, साध्वीजी, अंगुलियाँ तथा भवा घुमाना कौआ, कोठे के फल ॥५६॥ । सिरकंप मूअ वारुणि, पेहत्ति चइज्ज दोस उस्सग्गे; लंबुत्तर थण संजइ, न दोस समणीण सवह सड्ढीणं ॥५७॥
मस्तक हिलाना, मूक(गुंगा), मदिरा, बन्दर (कपि) इन दोषो का कायोत्सर्ग में त्याग करना चाहिये । साध्वीजी को लंबुत्तर स्तन और संयती और श्राविकाओं को वधू सहित (चार) दोष नहीं लगते ॥५७॥ इरि उस्सग्गपमाणं, पणवीसुस्सास अट्ठ सेसेसु; गंभीर-महुर-सहं, महत्थ-जुत्तं हवइ थुत्तं ॥ ५८ ॥
इरियावहिय के कायोत्सर्ग का प्रमाण २५ श्वासोच्छ्वास प्रमाण है और शेष कायोत्सर्ग का प्रमाण ८ श्वासोच्छ्वास है । गंभीर और मधुर शब्दवाला तथा महान् अर्थवाला स्तवन होना चाहिए । (५८)
भाष्यत्रयम्