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नमस्कार द्वारा जघन्य, दंडक और स्तुति युगल द्वारा मध्यम, पांच दंडक, चारस्तुति, स्तवन और प्रणिधान द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन होता है ॥२३॥ अन्ने बिंति इगेणं, सक्क-त्थएणं जहन्न-वंदणया; तदुग-तिगेण मज्झा, उक्कोसा चउहिं पंचहिं वा ॥ २४ ॥ ___ अन्य आचार्य भगवंत कहते है कि एक नमुत्थुणं द्वारा जघन्य, दो या तीन द्वारा मध्यम और चार या पाँच द्वारा उत्कृष्ट (चैत्य) वंदना होती है ॥२४॥ पणिवाओ पंचंगो, दो जाणू करदुगुत्तमंगं च; । सुमहत्थ नमुक्कारा, इग दुग तिग जाव अट्ठसयं ॥ २५ ॥ __ प्रणिपात पांच अंगवाला है । दो घुटने, दो हाथ, और मस्तक, एक, दो, तीन लेकर एक सौ आठ तक विस्तृत अर्थवाला नमस्कार होता हैं ॥२५॥ अडसट्ठि अट्ठवीसा, नवनउयसयं च दुसय-सगनउया; दोगुणतीस दुसट्ठा, दुसोल अडनउयसय दुवन्नसयं ॥ २६ ॥
अडसट्ठ, अट्ठावीस एक सौ निन्यान्वे, दो सौ सत्तानवे, दो सौ ऊनतीस, दो सो साठ, दोसो सोलह, एक सौ अट्ठानवे, एक सो बावन ॥२६॥ इअ नवकार-खमासमण, ईरिअ-सक्कत्थआई दंडेसु; पणिहाणेसु अ अदुरुत्त, वन्न सोलसय सीयाला ॥ २७ ॥ श्री चैत्यवंदन भाष्य