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पणिवाय अक्खराईं, अट्ठावीसं तहा य इरियाए; नवनउअ-मक्खरसयं, दुतीस पय संपया अठ्ठ ॥ ३१ ॥
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प्रणिपात सूत्र में अट्ठावीस अक्षर है । और इरियावहिया में एकसो निन्यान्वे अक्षर, बत्तीस पद और आठ संपदाएँ है ॥३१॥
दुग दुग इग चउ इग पण, इगार छग इरिय- संपयाइपया; ईच्छा इरि गम पाणा, जे मे एगिंदि अभि तस्स ॥ ३२ ॥
इरियावहिया की संपदाओ के दो, दो, एक, चार, पांच, अग्यारह, और छ पद है । इरियावहिया की संपदाओं के प्रारंभ के पद इच्छा० इरि० गम० पाणा० जे मे० एगिंदि० अभि० तस्स० है ||३२||
अब्भुवगमो निमित्तं आहे - अरहेउ-संगहे पंच; जीव-विराहणपडिक्कमण भेयओ तिन्नि चूलाए ॥ ३३ ॥
अभ्युगम, निमित्त, सामान्य, और विशेष हेतु संग्रह ये पांच और चूलिका में जीव, विराधना, और प्रतिक्रमण, के भेद से तीन ॥३३॥
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दु-ति-चउ पण पण पण दु, चउतिपयसक्कत्थयसंपयाइपया; नमु - आइग पुरिसो लोगु अभय धम्मप्पजिणसव्वं ॥३४॥
दो - तीन - चार - पांच-पांच-पांच-दो-चार - तीन पदो वाली शक्रस्तव की संपदाएँ है । शक्रस्तव की संपदाओं के आदि
श्री चैत्यवंदन भाष्य
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