Book Title: Bhashya Trayam Author(s): Devendrasuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 7
________________ न्हवणच्चगेहिं छउमत्थ-वत्थ पडिहारगेहिं केवलियं; पलियंकुस्सग्गेहि अ, जिणस्स भाविज्ज सिद्धत्तं ॥ १२ ॥ जिनेश्वर परमात्मा को स्नान करवाने वालों द्वारा और पूजा करनेवालों द्वारा छद्मस्थावस्था, प्रातिहार्यो द्वारा कैवलिकावस्था तथा पर्यंकासन और काउस्सग्ग द्वारा सिद्ध अवस्था का चिंतन करना ॥१२॥ उड्डाहो तिरिआणं, तिदिसाण निरिक्खणं चइज्जहवा; पच्छिम-दाहिण-वामाण, जिणमुहन्नत्थ-दिट्ठि-जुओ ॥१३॥ जिनेश्वर परमात्मा के मुखपर दृष्टि स्थापित करके ऊपर नीचे और आसपास अथवा पीछे, दाँयी और बाँयी इन तीन दिशाओं में देखने का त्याग करना ॥१३॥ वन्नतियं वन्नत्था-लंबणमालंबणं तु पडिमाइ; जोग-जिण-मुत्तासुत्ती, मुद्दाभेएण मुद्दतियं ॥ १४ ॥ वर्ण (अजर) अर्थ और प्रतिमा आदि का आलंबन लेना वर्णादि आलंबनत्रिक है । योगमुद्रा, जिनमुद्रा और मुक्तासुक्ति मुद्रा के भेद से मुद्रात्रिक है ॥१४॥ अन्नुन्नंतरिअंगुलि कोसागारेहिंदोहिं हत्थेहि; पिट्टोवरि कुप्पर, संठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति ॥ १५ ॥ भाष्यत्रयम्Page Navigation
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