Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
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(२८१२) दण्डोत्पलास्वरस: ( रा. मा. । व्रणा. )
दण्डोत्पलायाः स्वरसेन पूर्णो रिक्तीकृतो यः परिपूरितश्च । पश्चानिबडो मृदुपट्टकेन
क्षिप्रं स संरोहति शस्त्रघातः ॥ शस्त्रके घावमें दण्डोत्पला ( सहदेवी भेद ) का स्वरस भरकर उसे निकाल दीजिये और फिर दुबारा भरकर उसपर कोमल वस्त्रकी पट्टी बांध दीजिये । इससे घाव शीघ्र ही भर जाता है । (२८१३) दधिदुग्धकृति: ( १ ) (ग. नि. । ख. २ वाजी. ) लिप्ते कपित्थेन सुभाजने हि
चित्रेण पक्वाम्ररसेन तत् । क्षुण्णा म्रकास्थना च पृथक् पृथग्वै
न्यस्तं शृतं दुग्धवरं दधि स्यात् ॥ पात्रमें पानी में पिसे हुवे कैथके गूदेका या चीतेको पानी में पीस कर उसका अथवा पक्के आमके रसका लेप करें या आमकी गुठलीको पानी में पीसकर उसका लेप कर दें। इस बरतनमें पका हुवा दूध भर देनेसे उसकी दही बन जाती है ।
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करके सुखा लीजिये । इस बरतनमें पका हुवा दूध भर देनेसे उसकी उत्तम दही बन जाती है । (२८१५) दधिदुग्धकृति: ( ३ ) (ग. नि. । ख. २ वा. अ. ) पकस्य मज्जा सुकपित्थकस्य
वारं च वारं भृतदुग्धभाविता । शुष्काम्रचूर्णे रसस्य मध्ये क्षिप्तेक्षुजातं कुरुते सुदुग्धम् ॥ पके हुवे कैथके गूदे को बार बार गरम दूध में घोटकर सुखा लीजिए, फिर ईखके रस में थोड़ासा सूखे आमका चूर्ण डालकर उसमें यह चूर्ण डाल दीजिए। इससे उसका दूध बन जाता है । (२८१६) दधिदुग्धकृति: ( ४ )
( ग. नि. । ख. २ वाजि. अ. ) पकस्य चूर्ण सुकपित्थकस्य
दुग्धेन भाव्यं महिषीभवेन । शुष्कं क्षिपेतत्रयुते सुभाण्डे
तत्कालिकं स्यादधि निर्जलं वै ॥ कैथके पक्के फलेक गूदेको भैंसके दूधकी भावना देकर सुखा लीजिए। इसे तकमें डालने से तुरन्त उसकी जल रहित दही बन जाती है । (२८१७) दध्यम्लप्रयोगः
(२८१४) दधिदुग्धकृति: ( २ )
(ग. नि. । खं. २ वाजी. अ. ) सन्तिडीकैवंदराम्लदाडिमैः; श्रेष्ठ तथैवं सरसं दधि स्यात् । इमलीका पीसकर बरतन में उसका लेप कर दीजिए, अथवा बेर या खट्टे अनारके रसका लेप
भोजनसे पहिले दहीके मस्तुमें बच और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीनेसे अपतानक रोग नष्ट होता है।
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(च. द. । वा. व्या. अ. २२ ) हन्ति माम्भोजनात्पीतं दध्यम्लं सवचोषणम् । अपतानकमन्योऽपि वातव्याधिक्रमो हितः ।।
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