Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 4
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा प्रखण्ड पाठ की विधि आत्मा को परमात्मा बनाने के लिये यह प्रावश्यक है कि परमात्मा के पवित्र गुणों का वारम्बार चिन्तन, मनन वा स्तवन कर उन्हें आत्मा में व्यक्त और विकसित करने का प्रयास किया जावे । इसी आन्तरिक भावना से भक्तामर स्तवन द्वारा परमात्मा की श्राराधना से आत्मविकाश की परिपाटी जैनसम्प्रदाय में शताब्दियों से प्रचलित है। जगतिंपी, बोतराग संदेश जिनेश के समक्ष भक्तामर स्तोत्र "" का या विधि इस प्रकार है। पाठ प्रारम्भ होने के एक दिन पहिले एक बड़े तखत पर पंचवर्ण सन्दुलों से इसी पुस्तक में पेज नं० ४ पर श्रति मण्डल ( माड़ना) बनाया जाए । दूसरे दिन प्रातः स्नान कर घौत वस्त्र पहिनकर पूजन सामग्री तैयार कर माड़ने के ऊपर ( प्रारम्भ में ) उत्तर या पूर्व भूख उच्चासन पर सुन्दर सिंहासन में श्री आदिनाथ भगवान की बड़ी और मझौल दो मूर्तियों तथा सामने एक उच्चासन पर श्री विनायक ( सिद्ध ) यन्त्र स्थापित किया जावे। पश्चात् मङ्गल और शोभा के हेतु भ्रष्ट मङ्गलद्रव्य, छत्रम और मष्टप्रातिहार्य यथास्थान स्थापित किये जायें। सिंहासन से कुछ नीचे एक छोटे वाजौटे पर प्रतिमा की बांई पर एक अखण्ड दीपक ( जो कार्य समाप्ति पर्यन्त बराबर जलता रहे ) प्रज्वलित किया जाये । पश्चात् वादिवनाद हो चुकने के अनन्तर उपस्थित सभी जनता उच्चस्वर से 'जैनवर्स की जय' 'श्रादिनाथ भगवान की जय' 'भक्तामर महामण्डल विधान को जय' बोलें । पश्चात् पचान्त में पुष्पप्रक्षेप करते हुये मङ्गलाचरण वा मङ्गलाष्टक पढ़ा जाये । तदनन्तर परिणामशुद्धि, रक्षासूत्रबन्धन, तिलककरा, रक्षाविधान, दिग्बन्धन कर मङ्गलकलश स्थापित करना चाहिये ।

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