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अथ १३ चंद्रबाहु स्तवनम.
तुमे बहु मंत्रिरे साहिवां-ए राग. चंद्रबाहु जिन सांभळो, मारो करशो उद्धार; शरणागतनेरे तारतां, थाशे बहु उपकार. चंद्र० ॥१॥ प्रभु तुज भक्त अनेक छे, मारे तो मन एक पुष्टालंबन तुं वडो, मनमां तारीरे टेक. चंद्र० ॥ २ ॥ उपकारी अरिहंतजी, तारो त्रिभुवन राज; करुणा करीने रे तारतां, रहेशे सेवक लाज. चंद्र० ॥ ३ ॥ शुद्ध रूप तारं खरं, स्मरतां टाळे रे क्लेश; बुद्धिसागर ध्यानथी, आनंद होय हमेश. चंद्र०॥ ४ ॥
अथ १४ भुजंगदेव स्तवनम्.
राग उपरनो. भुजंगदेव भावे भजो, भय सघळ। हरनार; पुरुषोत्तम भगवान छो, भाव दयाना भंडार. भु०॥ १ ॥ चोत्रीश अतिशय शोभता, वाणी गुण छे पांत्रीश; शासनपति त्रिभुवन धणी, परमब्रह्म जगदीश. भु० ॥२॥ स्मरण मनन तारुं कर्यु, उपयोगे धर्यो देव; बुद्धिसागर पारखी, तारी साची छे सेव. भु०॥३॥
अथ १५ ईश्वर जिन स्तवनम्.
प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये-ए राग. अरिहंत ईश्वर मन वश्यो, स्वामी शिवपुर साथ; तारक त्रिभुवन पति तमे प्रेमे झालजो,
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