Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ प्रीति वर्णन. पैसा पैसा पैसा हारी-ए राग. प्रीति प्रीति प्रीति प्रीति, प्रीतिछे सुखकारी रे; . दुनियाने प्रीति छ प्यारी, प्रीतिथी छे यारी रे. प्रीति० ॥१॥ प्रीतिनी आगल शुं भीति, प्रीतिथी छे नीति रे, प्रीतिथी परमेश्वर प्यारो, प्यारी प्रीति रीति रे. प्रीति० ॥२॥ प्रीति विना लु भोजन, प्रीति सहुथी मीठी रे; प्रीतिथी संपीली दुनिया, नजरे ज्यां त्यां दीठी रे. प्रीति० ॥ ३ ॥ प्रेम विनातो चेन पडे नहि, प्रीति जीवन मोडें रे प्रीति वण तो क्लेशी दुनिया, प्रीति वण तो खोटुं रे. प्रीति० ॥ ४ ॥ दुध मीटु साकर मीठी, मीठी घेबर पारी रे सहुथी मीठी प्रीति जगमां, समजो नरने नारी रे. प्रीति० ॥५॥ पीति वण भक्ति छे लूखी, प्रीति वण श्या मेवा रे प्रीति वण तो सेवा लूखी, प्रीति वण क्या देवा रे. प्रीति० ॥ ६ ॥ प्रीति आगल प्राण नकामा, प्रीति सारी खोटी रे; धर्मे सारी पापे बूरी, प्रीति सारी रोटी रे. प्रीति० ॥ ७॥ जेवी प्रीति तेवी रीति, प्रीतिना बहु भेदो रे; प्रीतिना विरहे प्रगटे छे, जगमां ज्यां त्यां खेदो रे. प्रीति० ॥ ८ ॥ प्रीतिथी भक्ति छे सहेली, प्रीति कामणगारी रे प्रीतितुं अजवाळु भारी, प्रीतिनी बलिहारी रे. नीति० ॥९॥ प्रीति आगल सर्व नकामुं, प्रीति सुखनी क्यारी रे; बुद्धिसागर धार्मिकमीति, धरजो नरने नारी रे. प्रीति० ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only

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