Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 213
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ अजित जिनस्तुति. ओधवजी संदेशो कहेशो श्यामने-प राग. अजित जिनेश्वर अजरामर अरिहन्तछो; ब्रह्मा विष्णु परमेश्वर महादेवजो, सहजस्वरूपी क्षायिक नवलब्धि धणी; द्रव्य भावथी नमुं करु हुँ सेवजो. अजितः ॥ १॥ एकसमयमा जाणो देखो सर्वने । समयान्तर जाणो देखो पण पक्षजो, केवलज्ञाने जाणो लोकालोकने नयपक्षोना लक्षे वाद न दक्षजो. . अजित० ॥२॥ असंख्यप्रदेशी आत्मप्रभु छो दिनमणि प्रति प्रदेशे अनन्तगुण निर्धारजो, तिरोभावना नासे आविर्भावता; शोभे चेतन शुद्ध स्वरूपाधारजो. अजित० ॥ ३ ॥ सहज शुद्धपर्याये सिद्धपणुं भलु शब्दादिकनयथी चेतनता शुद्धजो, निःसंगी नीरागी निर्भय नित्य छ। परमब्रह्म विमलेश्वर निश्चय बुद्धजो. अजित ॥ ४ ॥ सादि अनंति स्थिति शुद्ध स्वभावथी; अमूर्तव्यक्ति अगुरुलघुता सारजो, बुद्धिसागर अजितजिनेश्वर सेवना; अनन्तगुणपर्यायतणा आधारजो. अजित० ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only

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