Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१८९
आत्म शक्ति अभ्यासक ध्याने कर्म हणेछे. निजरमणताध्यानथी तो आत्म शक्ति खीलती सहजशक्ति आत्मनी खरी सर्व दोषो पीलती. ॥२९ ।। सदुपयोगे सुज्ञानीनी लब्धि शक्ति, दुरुपयोगे अज्ञानिनी लब्धि शक्ति; चेतनशक्ति पामी ज्ञानी जरा न फूले; अज्ञानी लधिने पामी भवमा झूले, अज्ञानी पण ज्ञानियोना संगथी सुधरे खरो, परस्वभावे लब्धिने नहि वापर मनमां धरो. आत्म शक्तिने खीलवची अन्तरमा पेसी, असंख्यप्रदेशी चेतनराया निर्भयदेशी; -शुद्धस्वभावे स्थिरता करवी ध्यान विचारे, चेतन तरतो भवजलधिथी परने तारे. आत्मशक्ति खीलववामां चित्त निश्चलता करो। बुद्धिसागर आत्मशक्तिज पामीने दुःखडां हरो... ॥३१॥ चेतन शक्ति जे जे अंशे प्रगटे साची, ते ते अंशे धर्म खरो मानो मन राची; निरुपाधियी चेतन शक्ति तुर्त प्रकाशे, निरुपाधियोगे झट चेतन शर्म विलासे. आतम शक्ति खीलववा झट निरुपाधिपद राचीए; बुद्धिसागर आत्मप्रेमे परम ईशता याचीए. ॥ ३२ ॥ परमईश भगवान् हृदयमा प्रेमे ध्यावो, पोते छे भगवान् हृदयमा धेगे भावो; स्वामी सेवक पोते ते आपे निज देतो, शब्दातीत व्यवहारे ते वाणीने कहेलो.
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