Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ क्षयोपशमना भेद ज्ञानथी एमज लेखो. क्षयोपशम भावे जीवोमां शक्तिना भेदो खरा; बुद्धिसागर शक्ति भेदो जगत्मा जय जय करा. ॥५४॥ ज्ञानादिक जे चार गुणोमा शक्ति भेदो, शुक्लध्यानना महाशस्त्रथी तेने छेदोः । क्षयोपशम गुण तेतो क्षायिक भावे होवे, अनेकान्तनी दृष्टि धरीने योगी जोवे. क्षयोपशम ते हेतु छे ने क्षायिक, कार्य कहाय छे, बुद्धिसागर क्षयोपशमनी शक्ति साधन थाय छे. ॥५५॥ क्षयोपशमनी शक्ति समकित प्रगटे साची, क्षयोपशमनी शक्ति समकित वण तो काचो; आत्मशक्तियो अंतरमा परिणमती समजो, समकितनुं सामर्थ्य गणीने तेमां रमजो. सम्यक्त्व शक्ति आत्ममांहि प्रगटती दुःख नाश छे, बुद्धिसागर आद्य समकित शक्तिनो विश्वास छे. ॥५६॥ अन्तर संयम निश्चल भावे शक्ति वधारे, अन्तर संयम निश्चल भावे दुःखडा वारे; अन्तर संयम क्रिया थकी तो सुखनी लीला, अन्तरसंयम क्रियापरायण सन्त रसीला. देह वाणी मन क्रियामा आत्म स्थिरता नहि जरा, बुद्धिसागर योगसाधन मुनियो जग जय करा. ॥ ७ ॥ साची सुखकर आत्म क्रिया जगमां जयकारी, पुद्रलनी किरियाथी न्यारी दुःख हरनारी; आत्म क्रियाथी अनुभव साचो मनमां. भासे, विरति गुणथी संयम शिखरे जीव प्रकाशे. For Private And Personal Use Only

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