Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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૨૨૭
बुद्धिसागर आत्मशक्तिज प्रगटशे ए नेम छे. अभ्यासे चेतननी शक्ति पूर्ण प्रकाशे, तीर्थकरने सिद्ध थया चेतन अभ्यासे; सूरि वाचकने मुनिवर मंडल शक्ति वधारे, रत्नत्रयीतुं सेवन करीने चेतन तारे. आत्मशक्ति वृद्धि माटे मुनिवरो दीक्षा ग्रहे; बुद्धिसागर भक्ति योगे सत्य शक्तिज जन लड़ें. जे जन जेमां रंगाशे तेने ते मळशे, चेतनमा रंगाशे ते तो सुखमां भळशे; वाळीनी चेतन शक्तिथी रावण हार्यो, विष्णुकुमारे पापी नमुचिने झट मार्यो. क्षयोपशमनी शक्तिथी आश्चर्य मोडं यह रहे,
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॥ ६२ ॥
॥ ६३ ॥
बुद्धिसागर प्रगट क्षायिक शक्ति महिमा सुख लहे. ।। ६४ ।। चौदपूर्वनी रचना करता गणधर देवा, मुहूर्तमांहि ज्ञान शक्तिथी समजे सेवा; पंच ज्ञानने दर्शन चारे चेतन शक्ति, महिमा अपरंपार धर्ममां घरीए भक्ति. आत्मज्ञानि सद्गुरुनी सेवनाथी धर्म छे. बुद्धिसागर गुरु प्रसादे मोक्षनां तो शर्म छे. परपरिणतिने दूर निवारी समता धारी, रूपातीतनुं ध्यान धरी वरशो शिवनारी; केवल चेतन बोध शक्तिधी धर्म खरो छे, सन्त जनोए आत्म धर्मने दील वर्यो छे. चैतन्य शक्ति जीवमां छे जीवथी न्यारी नही, बुद्धिसागर सन्तजनना दीलमां गुरुगम रही।
॥ ६५ ॥
॥ ६६ ॥

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