Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 203
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५० ॥ १९४. आत्म धर्मनु सेवन करवायी सुख शांति, आत्म धर्मर्नु सेवन करवायी नहि भ्रांति. आत्म शक्ति प्रगट करवा सहज समता साधीए बुद्धिसागर आत्मशक्ति प्रगटतां बहु वाधीए. चेतननी शक्ति छे चेतन भावे मोटी, आत्मशक्तिनी आगल पुद्गल शक्तिज खोटी; अरूप चेतन शक्ति सेवो, चरण सुधारी, विषय विकथा रागद्वेषने मनथी वारी. असद्वर्तन त्यागवाथी शुद्धवर्तन वाघशे; बुद्धिसागर शुद्धवर्तन सहज योगी साधशे. .सद्गुण शिखरे आत्म शक्तिथी जीव विराजे, कर्माष्टकनो नाश करी जगमां झट गाजे; आत्म शक्तिनी आगल कोइनुं कांइ न चाले, अन्तरात्म चिद्घननी सेवा शिव सुख आले. आत्मोपासक योगथी तो प्रगटतो सुखनो झरो; बुद्धिसागर योग शक्तिज पामीने प्राणी तरो. योगाभ्यासे चेतन शक्ति दिन दिन वधती, माया प्रपंच योगे शक्ति दिन दिन घटती; मननी शुद्धि करीए सद्गुरु ईश्वर पूजी, चेतन शक्ति जाणे प्रगट भव्य रमुजी. बीजमा व्यापी रह्यु छे सत्ताथी जेम वृक्षरे बुद्धिसागर जीवमांहि सिद्ध जाणो दक्षरे. आतम ते परमातम रूपे प्रगटे सारो, आतम आविर्भाव ईश ते मनमा धारो; पति जीवोमा भिन्न शक्तियो नजरे देखो, For Private And Personal Use Only

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