Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आत्म शक्तिथी सतीयोए शीयलने धार्यु, आत्म शक्तिथी गजसुकुमाले कार्य सुधार्यु; आत्म शक्तिथी अन्तर चक्षु क्षणमां उघडे, आत्म शक्तिथी धर्म कृत्यतो कदी न बगडे. आत्म शक्ति मोटकी छे सर्वथी जगमा अहो; बुद्धिसागर आत्मधर्मे राचीने जन मन रहो. ॥ ४२ ॥ आत्म शक्तिनी परिपूर्णता प्रगटे ज्यारे, सिद्ध बुद्ध जिनेश कहावे चेतन त्यारे; विघटे पुद्गल कर्मवर्गणा निर्मल न्यारो, चिदानंद भंडार अरूपी चेतन प्यारो सिद्धासनने कीजीए घट ध्याइने चेतनमणि; बुद्धिसागर ध्यानयोगे आत्म शक्तिज छे घणी. ॥४३॥ आत्म शक्तिनुं वर्णन कदीन पुरु थातुं, सद्गुरु कृपाकटाक्षे चेतन रूप पमातुं; विषयेच्छानो नाश थवाथी संयम वृद्धि, परिपूर्ण स्याद्वाद स्वरूपी चेतन ऋद्धि. देह छतां पण देहथी तो भिन्न भासे छे यदि बुद्धिसागर ज्ञान शक्तिज प्रगटती त्यारे हृदि. ॥४४॥ सहज शुद्ध उपयोग हृदयमा झळहळ भासे, आनंद अपरंपार स्वभावे ब्रह्म विकासे; शाताशाता कर्म थकी पोते छे न्यारो, विमलेश्वर विख्यात हृदयमां निशदिन प्यारो. शुद्धध्याने ध्याइए निज सत्य शांति स्वरूपने बुद्धिसागर आत्म ज्योतिः ध्याइए निज रूपने. ॥ ४५ ॥ शत्रुजय प्रख्यात स्वभावे निर्मल ज्योति,
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