Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ३३ ॥
॥३४॥
ईश चेतन देव तेने पूनीए प्रेमे भवी; बुद्धिसागर ज्ञान किरणे भासतो हृदये रवि. आत्म शक्तिथी योगी मेरुगिरि कंपावे, आत्म शक्तिथी योगी पृथ्वीनेज धुजावे; आत्म शक्तिने साध्य कर्याथी सिद्ध कहावे, आत्म शक्तिनी भक्ति कर्याथी विद्या आवे. आत्म शक्ति स्मरण करतां प्रगटती व्यक्ति खरी; बुद्धिसागर आत्मशक्ति योगिओए घट वरी. आत्मशक्तिने केळववामां गुरुतुं शरणुं, आत्म शक्तिनी आगल कर्माच्छादन तरणु; तरणाथी सूरज तो कदी न ते ढंकाशे, एवी युक्ति गुरुगमथी जाणी विश्वासे... आत्मशक्ति झगमगे त्यां मुक्तिनां सुख सत्य छे; बुद्धिसागर आत्मशक्तिज केळवणी ए कृत्य छे. केवलज्ञाने जाणे दर्शनथी सहु देखे, केवलज्ञाने प्रगटपणे भावो सहु पेखे, श्वासोश्वासे आत्मध्यानयी शक्ति सुहावे, श्वासोश्वासे आत्मध्यानथी शक्ति वधावे; क्षयोपशमथी वीर्यशक्ति हि आत्मनी प्रगटे खरी. बुद्धिसागर शूरवीरनी वीर्यशक्ति दील धरी. कुमतिने सुमतिरूपे छे ज्ञाननी शक्ति, क्षयोपशमने क्षायिक भावे ज्ञाननी व्यक्ति उपशम क्षयोपशमने क्षायिक भावे स्थिरता, क्षयोपशमथी जाणी लेजो चेतन वीरता.. धागि प्रयोपशम भेटे जाणीप घट वीर्यता.
॥३५॥
॥ ३६ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218