Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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बाह्य अने अंतर त्राटकमां चेतन भक्ति; बाहिर करतां अन्तर त्राटक शक्ति वधारे, अंतरत्राटक ज्ञानयोगथी दोषो वारे.
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असंख्य प्रदेशी आत्मव्यक्ति धारणामां धारीए; बुद्धिसागर ध्यानयोगे जीवने झट तारीये. आत्मिक शक्ति सहुथी मोटी सुखने आपे, आत्मिक शक्ति सहुधी मोटी दुःखडां कापे; आत्मस्वरूपे लीन थवाथी अनुभव आवे, - अन्तरमा उद्योत सदा जिनवाणी गावे. आत्म शक्ति यत्न करतां ईशता वेगे मळे, बुद्धिसागर आत्मशक्ति प्रगटतां सुखमां भळे. आत्मशक्ति अभ्यास करे अन्तरना योगी, आत्मशक्ति अभ्यास करे चेतनना भोगी; आत्मज्ञानथी आत्म शक्तिनी शोधज थाती; सद्गुरुगमथी ज्ञान लह्याथी वस्तु पमाती.. आत्मज्ञाने रीजीए दील ध्यान प्याला पीजीए, बुद्धिसागर लीजीए शिव चित्त तन्मय कीजीए. आत्म शक्तिना सेवक छे वैरागी त्यागी, आत्म शक्तिना ध्याता छे अन्तरना रागी; आत्म शक्तिनो महिमा जगमां जोशो भारी, आत्म शक्तिने सेवो प्रेमे नरने नारी. आत्मनी विवेचनाथीज आत्ममां रंगावनं, बुद्धिसागर आत्ममां स्थिर चित्त ध्याने भावं आत्म शक्तिथी जयडंको जगमां झट वागे, आत्म शक्तिथी सुर नरपतियो पाये लागे;
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