Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨ स्वामी सेवक भाव नहीं, सरखा सत्तावान्. स्वरूप शुद्ध अगाध छे, अनुभव तेनो लेश; पामी पद ए वर्णव्युं, जेनो रुडो देश. गुणस्थानक लही तेरमुं, परमातम प्रकाश; अनन्त गुणमय केवळी, अक्षयने अविनाश. नगर माणसा शोभतुं, ऋषभदेव जिनराय; पार्श्वमधुनी साहाथी, पूरण ग्रंथ कराय. भूल चूक मति दोषथी, जिन आणाथी विरुद्ध; भासे तेह सुधारने, करशो सज्जन शुद्ध. संवत ओगणीशे उपरे, रुडी एकशठशाल; माघ शुदी दसमीदिने, पूर्ण ग्रंथ सुविशाल. तत्वस्वरुरू न अन्यथा, सिद्ध सनातनरूप; बुद्धिसागर पामतां, मंगलमय चिद्रूप. धरणेंद्र पद्मावती, पार्श्वयक्ष गुणशोल; श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ, करशो मंगळमाळ. इति श्री आत्म स्वरुप ग्रंथ समाप्तः For Private And Personal Use Only ।। २४८ ।। ॥ २४९ ॥ ।। २५० ।। ॥ २५१ ॥ ।। २५२ ।। ॥ २५३ ॥ ।। २५४ ॥ ।। २५५ ॥

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