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॥४॥
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ज्ञाता ज्ञेय विचार सारमा लदबद रहेती. श्रुत वाणीने सेवीए दिल अनुभव सुखडा आपती, बुद्धिसागर सरस्वती झट भ्रांति दुःखडा कापती.. आत्म शक्तिनी सेवा सुखडा सहु करनारी, आत्म शक्तिनी सेवा दुःखडां सहु हरनारी आत्म शक्तिनो व्यक्तिभाव योगाष्टक साधे, आत्मशक्तिनो व्यक्तिभाव छे गुरु आराधे. आत्मशक्तिनी आगले सहु देवता पाणी भरे, बुद्धिसागर आत्म व्यक्ति पामतां संपद् वरे. लाख चोराशी जीवयोनिमा कोइक उंचा, लाख चोराशी जीवयोनिमां कोइक नीचा; लाख चोराशी जीव योनिमां काल अनादि, भटक्यो जीव अज्ञाने पामी आधि व्याधि. पुण्य पापथी उच्च नीचज प्राणी गतिने पामतो, शुभाशुभ परिणामथी एम कर्म लेतो वामतो. अशुभ परिणामे अवतारो अशुभ थावे, रौरव दुःखो दुर्गति प्राणी बहु पावे; अशुभ विचारे दुष्कर्मोने प्राणी ग्रहतो, शुभ कर्मोने शुभ विचारे प्राणी वहतो. शुभ चेष्टाथी जाणशो जन पुण्यराशि उपजे, चित्तना व्यापार जेवुज कार्य तो झट नीपजे. दिल विचारोमा बहु शक्ति जाणी लेजो, मननी शक्ति वापरवामां मनडुं देजो; विचार सारा खोटा करवा चेतन हाथे, विचार जेवा तेवु फल भाख्यं जिननाथे.
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