Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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योगि योग समाधिथी, पुनर्जन्मनी बात;
सिद्ध ग्रहे छे ज्ञानमां, अनुभवधी साक्षात्. पुनर्जन्म संस्कारथी, क्रोध अदिमां सिद्धः नास्तिकवादि तर्कने, देशबटो एम दीघ. पंच भूतथी भिन्न ए, चेतन नहि परखाय; पंच भूत संयोगथी, चेतन शक्ति याय. चेतन शक्तिज्ञातृता, पंच भूत संयोग; पंच भूत संयोग वण, घटे न चेतन योग. पंचभूत संयोगथी, आतम संज्ञा थाय; पंच भूतना योगयी, चेतन शक्ति विलाय. ओछ अधिकां पंच भूत, मलतां घटना थाय; 'अंधा बहिरा बोबडा, पंचभूत महिमाय फेरफार वायु थकी, साजा गांडा थाय; इंद्रिय पंचनी शक्तियो, शक्ति भूत कहाय. मृतक शरीरे पंच भूत, संयोगे पण होय; रही नहीं त्यां ज्ञातृता, जडता धर्मे जोय. जडता धर्मे पंच भूत, काल अनादि जोय; चित् शक्ति चेतन विषे, भिन्नपणे अवलोय. पंचभूतयी भिन्न छे, जाणो आतम द्रव्य; कोटि कुतर्कोएकरी, वले नही कंइ अव्य. उपज्यो नहीं ए हेतुयी, अज आतम कहेवाय; रूप नहि ए हेतुथी, अरूप एह ग्रहाय. पुद्गल स्कंधो कर्म रूप, ग्रहि करे अवतार; निश्वयथी अरूप पण, रूपीनय व्यवहार. अंधा बहेरा बोबडा, कर्म थकी उपजाय;
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