Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 178
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक दृष्टि जेहनी, तेने सवळु होय. ॥ ९८॥ जीव ईश्वरमा भेद तो, मायाथी परखाय; बेमा छे ज्ञानादि गुण, भिन्नपणुं शु थाय. ॥ ९९ ॥ भिन्नपणुं माया थकी, जीव ईश्वरमा भेद; पर परिणतिए करी, शुं त्यां करीए खेद. ॥ १० ॥ माया जड स्वरूप छे, चेतन नहीं कहेवाय; जीष ईश्वरमा चेतना, द्वि तत्त्वे चित्तलाय.. ॥१०१॥ अनित्य आतम मानतां, घटे न युक्त विचार; जन्मांतरमा यादी तो, नित्य थकी सोहाय. ॥१०२ ॥ क्षणिक आतम मानतां, को कोथी बंधाय; कोइ करे को भोगवे, ए मोटो अन्याय. ॥ १०३ ॥ क्षणे क्षणे विचार श्रेणि, उपजे विणशेभाइ; आतम नित्य स्विकारतां, क्युं कर होय सगाइ. || १०४ ॥ भूत भाविने संमति, त्रिकाले एक रूप; स्वरूप फरे नहीं जेहनु, मान नित्य कर चूप. ॥१०५ ।। नित्य आतमा होय तो, शो विचारे फेर; जो विचारे फेर तो, नित्य आहे अंधेर. अनित्य माटे आतमा, क्षणे क्षणे बदलाय; करे विचारो आत्म फेर, क्षणिक वादनो न्याय. ॥ १०७ ॥ सद्गुरु कृपा कटाक्षथी, कहेता आतम तत्व; सत्य युक्तिथी धारीये, तो प्रगटे भव्यत्व. ॥१०८॥ अनित्य आतम मानवो, अहि एकांते पक्ष; अनेकांत मतज्ञानथी, सवढं माने दक्ष. ॥ १०९ ॥ द्रव्याथिक नय पक्षथी, आतम नित्य कहाय; पर्यायार्थिकनय थकी. आनित्य आतम थाय, ॥११० ।। For Private And Personal Use Only

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