Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१६१
ॐ नमः संखेश्वर पार्श्वनाथाय.
अथ आत्मस्वरूप ग्रन्थः
छंद दुहा.
शुद्ध बुद्ध परमातमा, अविनाशी चिद्रूप; अखंड अजरामर विभु, चिदानंद सुखरूप. परस्वजाति परातमा; ध्येयरूप गुणधामः सिद्ध मुहंकर ध्यावतां, ध्याता गुणगण ठाम. अनेकांतनयनाकथक, पूर्णानंद स्वभाव; अरिहंतादिक ध्यावतां, स्तव्रतांटले विभाव. कर्मोपाधियोगथी, आतम भेद कहाय; कर्मोपाधि जोटळे, भेद भाव दुर जाय. बाहिर अंतर आतमा, परमातम ऋण भेद; तेनां लक्षण जुजुवां, समय वाणीथी वेद. पंचभूत ते आतमा, अथवा देहाध्यास; पुद्गल माने आतमा, बहिरातम ए खास. बुद्धि एहवी जेहने, ते मिध्यात्वी जोय; पुण्यपापने नवगणे, भवाभिनंदि होय. खावुं पीवुं पहेरवुं जगमां माने सार; बहिरात पद प्राणिया, लहे न तत्व विचार. आपमतिए चालता, करता तर्क वितर्क; पाप पुंज पोठी भरी, जावे भरीने नरक. बाहिर दृष्टि तेहनी, भूले भवमां फोक; एळे जन्म गुमावता, शुं त्यां करिए शोक.
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