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भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०-जो पवित्र, प्रसन्न, गुरु और देवका भक्त, दृढ़ व्रतवाला, सत्यभाषी, दयालु, बुद्धिमान् , चतुर और बीजाक्षरोंका निश्चय करनेवाला हो ऐसा व्यक्ति हो लोकमें मन्त्री हो सकता है। एते गुणा यस्य न सन्ति पुंसः, कचित्कदाचिन्न भवेत्त मन्त्री । करोति चेदर्पवशात्स जाप्य, प्राप्नोत्यनर्थ फणिशेखरायाः ॥१।।
अर्थ-जिस पुरुषमें यह गुण न हों वह कहीं भी और कभी भी मन्त्री नहीं हो सकता, यदि ऐसा पुरुष अभिमानसे जाप करता है तो वह देवी पद्मावतीसे हानिको प्राप्त होता है। इति भैरव पद्मावतोक्ल्पकी भाषा टोकामें मन्त्रीलक्षणाधिकार
नामका प्रथम परिच्छेद समाप्त ।
द्वितीय परिच्छेद
सकलीकरण क्रिया स्नात्वा पूर्व मन्त्री प्रक्षालितरक्तवस्त्रपरिधानः ।
सम्मार्जितप्रदेशे स्थित्वा सकलीक्रियां कुर्यात् ॥१॥ भा० टी०-मन्त्री पहिले स्नान करके, धुले हुये लाल वस्त्र पहिनकर लिपे पुते साफ स्थानमें बैठकर सकलीकरणकी क्रिया करे।
हो वामकरांगुष्ठे तर्जन्यां ह्रीं च मध्यमायां हू ।
ह्रौं पुनरनामिकायां कनिष्ठिकायां च हश्व स्यात् ॥२॥ - भा० टी०-चाए हाथके अंगूठेमें हां, तर्जनीमें ही, मध्यमामें हैं, मनामिकामें ह्रौं और कनिष्ठामें हः पाजको स्थापित करे।