Book Title: Bhairav Padmavati Kalp
Author(s): Mallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ १००] 2 भैरव पद्मावती कल्प मडलय इछिये तुहरणमंते पहरणदुत्थे आयामंडि पायालमडि सिद्धमंडि जोहणिमंडि सब मुहम डि कन्जलं पडउ स्वाहा। , इस काजलको ईशानकोणको ओर मुख करके पाड़े। अदृश्य गुटिका चितवह्निदग्धभूतद्रुमयमशाखामर्षि सभाहृत्य । ' अकोलतैलसूतकृष्णपिडाली जरायुश्च ।। २३ ।। भा० टी०-चिताकी अग्निसे जले हुये बहेड़ेके वृक्षकी दक्षिण दिशाकी स्याहीको लेकर उसको अझोलके तेल, पारदरस और काली विल्लोकी जरायु सहित, धूकनयनाम्बुमर्दितगुटिकां धृत्वा त्रिलोह संमठिताम् । कृत्वा तामात्ममुखे पुरुषोऽदृशत्वमायाति ॥ २४ ॥ भा० टी०-उल्लूकी आंखोंके पानी में मळफर गोली बनावे। उसको त्रिलोहके साथ सोलह अग्नि देकर अपने मुखमें रक्खे तो अदृश्य हो जावे। वीर्यस्तंभक गुटिका सितशरपु ख मूल हत्वा सितकोकिलाक्षवीजञ्च । बनवसलारसपिष्टं वीर्यस्तम्भे मुखे संस्थाम् ।। २५ ॥ भा० टी०-सफेद सरफोंकेकी जड़ और सफेद कोकिलाक्षके वीजोंको जंगली पोदीनेके रसमें पीसकर गोली बनाकर मुखमें रखे तो बीर्य स्तम्भन होता है। वीर्यस्तम्भक अस्थि कृष्णवषदंशजंघायाः शल्यखण्डमादाय । - पद कटिप्रदेशे वीर्यस्तम्भं नृणां कुरुते ।। २६ ।। -

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160