Book Title: Bhairav Padmavati Kalp
Author(s): Mallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ १२२] में भैरव पद्मावती कल्प स्नान कराकर अन्य वन आदि देकर गुरु क्रमसे चला माया हुआ मन्त्र दे और कहे भवतोऽस्याभिर्दत्तो मत्रोऽय गुरुपरम्परायातः साक्षीकृत्य हुताशनरविशशिताराम्बरा दिनणान् ।। ४९ ।। भा० टो०-'तुमको मैं यह गुरुपरम्परासे चला आया हुआ मत्र अग्नि, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र और साफाशकी साक्षीपूर्वक देता है। भक्ताऽपि न दातव्यः सम्यक्तविषार्जिताय पुरुषाय । किन्तु गुरुदेवसमये भक्तिमते गुणसमेताय ॥५०॥ मा० टी०-तुम भी इसको सम्यकत्वसे रहित पुरुषको न देना। किन्तु देव, शास्त्र और गुरुमे भक्ति रखने वाले गुणी पुरुषको ही देना। लोभादथना स्नेहाहास्यसि चेदन्यसमयभक्ताय । बालस्त्रीमुनिगोवधपापं यत्तद्भविष्यतीति ।। ५१ ।। भा० टी०-यदि तुम लोभ या प्रेमसे अन्य मतावलम्वीको दोगे तो तुमको बालहत्या, बोहत्या, मुनिहत्या और गोहत्याका पाप लगेगा। इत्येव श्रावयित्वा तं सनिधौ गुरुदेवयोः । मन्त्री समर्पयेन्मन्त्र सन्त्रासाधनयोगतः ।। ५२ ।। भा० टी०-मत्री उसको इस प्रकार गुरु और देवताके सामने शपथ देकर मंत्रसाधनके विधानके अनुसार मत्र दे दे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160