Book Title: Bhairav Padmavati Kalp
Author(s): Mallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 140
________________ १२० ] रय पद्मावती कल्प और कृष्ण इन पांच रगोके चूर्णसे बनाकर उसके चारों कोनोंमें जलसे भरे हुवे कलश रखे । तस्योपरिविपुलतरं मण्डलमतिसुरभिपुष्पमाकीर्णम् । चन्द्रोपम तोरणघण्टाबर दर्पणोपेतम् ॥ ४३ ॥ भा० टी० - उम्र के ऊपर अत्यन्त विस्तृत मण्डल बनावे, जो सुगन्धित पुष्पोंसे भरा हुमा हो बौर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, ध्वजा, घण्टों और सुन्दर दर्पणोंसे युक्त हो । 'परमेष्ठि मन्त्र प्रत्येक प्रणपपूर्व होमान्तम् । अष्टदलाम्बुजमध्ये हिमकुंकुम मजै पिलिखेत् ॥ ४४ ॥ C भा० टी० – तन कपूर, केशर मौर चन्दनसे एक अष्ट हमल बनाकर उम्रकी वर्णिका में निम्नलिखित मन्त्रोको लिखे । कर्णिका के मन्त्र — ॐ अर्हद्भयः स्वाहा । ॐ सिद्धेभ्यः स्वाहा | ॐ सूरिभ्यः स्वाहा । ॐ पाठकेभ्यः स्वाहा । ॐ सर्वस्वाधुभ्य स्वाहा । पूर्वाग्न्यादिषु दद्याज्जापादि जम्मादिदेवता होता: । तद्दक्षिणदिग्भागे हेममय पादुकां देव्याः || ४५ || भा० टी० – इस कमडके पूर्व यादि दिशाबोंके दलोंमें जया आदि देवियों और अभिकोण बादिके दलों में जम्मा आदि देवियोंको लिखकर इस कमटकी दक्षिण दिशाके भागमें देवी की स्वर्णमयी पादुका बनावे |

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