________________
८६]
* भैरव पद्मावती कल्प
दर्पण निमित्तकी तीसरी सिद्धि प्रणवं पिङ्गलयुग्म पण्णति द्वितयं महाविद्येयम् । टान्तद्वयश्च होमो दर्पण मन्त्रो जिनोद्दिष्टः ॥ १३ ॥ 'ॐ पिङ्गल २ पण्णति २ महाविधे ठः ठः स्वाहा।' इस महामन्त्रको जिनेन्द्र भगषान्ने दर्पण मन्त्र कहा है।
जाप्यं मानुस्खहले सित्पुष्पैश्चन्द्रकिरणसंकाशैः।
सिध्यति दशांसहोमेनादर्शनिमित्तमन्त्रोऽयम् ।। १४ ॥ भा० टी०-यह दर्पण निमित्त मन्त्र बारह सहस्र जप और चन्द्रमाझी किरणोंके समान सफेद पुष्पोके दशांस होमसे सिद्ध होता है।
चितिभस्मनकविंशतिवारा निर्मद्य दर्पण पूर्वम् ।
शाल्यक्षतोपरिस्थितनपाम्बुपरिपूर्णनलकुम्भे ॥ १५ ।। भा० टी०-पहिले दर्पणको स्मशानकी राखसे इक्कीस वार मलकर उसको शाटीके चांयलोके ऊपर रक्खे हुने नवीन जलसे भरे हुये नये काल शके ऊपर रक्खे ।
तं प्रतिनिधाय तस्मिन्नेकुलोद्भूतकन्यकायुगलम् । त्रिषु वर्णेष्वन्यतम स्नान धवलाम्बरोपेतम् ।। १६ ।। भा० टी०-उस दर्पणको फलशपर रखकर ब्रह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य तीनों वर्गों में से किसी एक वर्णकी दो कन्यालोको स्नान कराकर श्वेत बस्न पहिनावे।
अभ्यर्च्य गन्धतन्दुन्द्र निवेद्यकुसुमादिभिस्तत' कलशम् । दत्त्वा ताम्बूटादीनादर्श दर्शयेत्ताभ्याम् ।। १७ ॥ भा० टी०-फिर कलशका चन्दन, अक्षत नैवेद्य और पुष्प आदिसे पूजन करके और पान आदि देकर उन दोनो कन्याओंको दर्पण दिखलावे ।
मत्री मन्त्र पठन् कुमारिकायुगल तथा पृच्छेद । दृष्टं श्रुतम्न कथयति रूपं बचना मुकुन्दे ॥ १८॥