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भैरव पद्मावती प
नक्षत्र त्रिशूलों के अन्दर पड़े यो मृत्यु हो । यदि वह नक्षत्र मध्यके बाहर नक्षत्रों में से कोई हो तो विजय हो, अथवा वह बाहिर अर्थात् बर्द्धचन्द्राकार रेखाके बाहिर छह नक्षत्रों से किसी स्थान पर पड़े तो पराजय हो । गर्भ में पुत्र है या पुत्री
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दिशि विदिशि तदुमयान्तरवर्तिभ्यां दिशतु पृच्छके मन्त्री | क्रमशो बाल पाठ नपुंसकं पूर्णगर्भिण्याः || ३२ ॥
भा० टी० - यदि मन्त्री कोई पुरुष किसी पूर्ण समयबाली गर्मिणीकी भावी सन्तानका फल पूछने आवे तो यदि वह पूछनेवाला दिशामें खड़ा हो तो पुत्र अथवा यदि वह निदिशा में खड़ा हो तो पुत्री धोर यदि वह दोनोंके मध्य में हो तो नपुंसक सन्तान फल बतावे ।
स्त्री अथवा पुरुष किसको मृत्यु होगी वर्णमात्रांश्च दम्पत्योरेकीकृत्य त्रिभाजित न् । शून्यैकेन मृतिं पुत्रो नार्याद्वपङ्केन निर्दिशेत् ॥ ३३ ॥ सा० टी० -- स्त्री और पुरुष के नामोंमेंके व्यंजन और स्वरोंको प्रथकू२ लिखकर उनको गिनकर तीनका भाग दे । यदि शेष शून्य अथवा एक हो तो पुरुषको मृत्यु अथथा यदि शेष दो बचे तो खोकी मृत्यु बतढावे |
इति उभयभाषा कविशेखर श्री मल्लिषेणसूरि विरचित भैरव - पद्मावती कल्पकी पंडिता कळावती देवी सरस्वती (धर्मपत्नी कान्यसाहित्य - तीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री ) कृत भाषा टीकामें निमित्ताधिकार' नामका अष्टम परिच्छेद समाप्त ॥ ८ ॥
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