________________
८]
र भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०- फिर शिरपर शेषनागवाली, अत्यन्त रक्तकमलके मासनबाली, फर्कोट नागके वाहनघाली, प्रातःकालीन सूर्यके समान अरुण प्रभावाली, कमलके समान मुखवाली, तीन नेत्रवाली, हार्थोंमें वरदान, अंकुश, बड़े पाश और दिव्य फलवाली तथा जपनेवालाको सदा फलकी देनेवाली पद्मावतीका ध्यान करे।
अंशक परीक्षा परिज्ञायांशक पूर्व साध्यसाधकयोरपि ।
मन्त्र निवेदयेत्प्राज्ञो व्यर्थं तत्फलमन्यथा ।। १३ ॥ भा० टी०-बुद्धिमान पुरुष मंत्र और मंत्री के अशोंको जानकर ही मत्रको बतलावे । अन्यथा वह मन्त्र व्यर्थ होता है।
साध्यसाधकयो मानुस्वारं व्यंजनं स्वरम् । पृथक् कृत्वा क्रतास्थाप्यमूर्बाधोप्रविभागतः ॥ १४ ॥ भा० टी०--मन और मंत्रीके नामके अनुस्वार, व्यंजन और स्वरोको पृथक्२ करके ऊपर मंत्रके और नाचे मंत्रीके नामके अक्षरोंको रखे।
साध्यनामाक्षरं गण्यं साधकाढयवर्णतः । नपसक परित्यज्य कुर्यात्तद्वदभाजितम् ॥ १५॥ भा० टी०-मन्त्रीके नामके अक्षरोंसे मन्त्रके नामके अक्षरोंको ऋऋ ल ल को छोड़ गिने । और उनको जोड़कर चारका भाग दे।
आयो भागोद्धरितं त चाचं स्थापयेत्क्रमाद्धीमान् । 1', एकद्वित्रिचतुणों सिद्धं साध्यं सुसिद्धमरिम् ।। १६ ।।