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से भैरव पद्मावती कल्प
यसाधकाभिलषितं तत्त्स्मै वस्तु सा ददात्येव ।
झोभं प्रयान्ति रण्डाः सर्वा मपि भुवनवर्तिन्यः ।। २६ ।। भा० टी०-वह साधककी इच्छा की हुई सभी वस्तुएं देती है, उससे लोकमें रहनेवाली सभी विधवाएं क्षोभको प्राप्त होती हैं।
यंत्र संख्या ३८ स्त्री वशीकरण ध्यान
कि
तत्त्वं मन्मथबीजस्य तलोपरि विचिन्तयेत् । पार्श्वयोरेबल पिण्डं भ्रमन्तमरुणप्रभम् ।। २७ ।।
भा० टी०-क्लीके ऊपर ह्रींका ध्यान करके उसके दोनों ओर 'घूमते हुये अरुण प्रभावाने 'ब्लें' का ध्यान करे ।
योनौ क्षोभं मूर्धनं मोहनि पातन ललाटस्थम् । ' लोचनयुग्मे द्रावं ध्यानेन करोतु वनितानाम् ।। २८ ॥
भा० टी०-यह ध्यान, खियोंको योनिमें करनेसे क्षोभ, सिरमें करनेसे मोहन, मस्तकमें करनेसे पातन (विसर होकर गिरना), और दोनों नेत्रों में करनेसे द्राषण होता है।