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हैं भैरव पद्मावती कल्प
मुखपरके वस्त्र अथवा कृष्णाष्टमीको युद्ध में मरे हुये योद्धाके वस्त्रपर लिखे।
कन्याकर्तितसूत्रं दिवसेनकेन तत्पुनर्वोतम् । तम्मिन् हरितालाद्यैः कोरंटक्लेखनी लिखितम् ।। २०॥ भा० टी०-कन्या द्वारा कते हुये सूतवा एक दिनमें ही कपड़ा बुनवा कर उसपर इस यन्त्रको कोरटककी कलम और हरिताल आदिसे लिखे।
पद्मावत्या. पुरतः पीतैः पुरा समभ्यय॑ । यन्त्रपटं बध्नीयाग्मख्याते चोन्नतस्तम्भे ॥२१॥ ।
भा० टी०-फिर इस यन्त्रको पद्मावतीदेवीके सामने पीले पुष्पोंसे पूजन करके इसको एक अत्यन्त ऊचे प्रसिद्ध स्तंभमें बांध दे।
तं दृष्ट्वा दूरतरान्नश्यन्ति भयेन विह्वलीभूताः ।
विरचितसेनाव्यूहात्संग्रामेऽशेषरिपुवर्गा. ॥ २२ ॥ __भा० टी०-इस यन्त्रको दूरसे देखकर युद्धमें सेनाका व्यूह बनाये हुये सब शत्रु लोग भयसे विह्वल होकर भाग जाते हैं। इति भैरव पद्मावतोक्लरकी भाषाटोक में 'रतम्भन यन्त्राधिकार'
नामका पंचम परिच्छेद समान ।