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भैरव पद्मावती कल्प
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वशीकरण, रोधनसे मारण, प्रथनसे स्त्री आकर्षण और विदर्भणसे क्रोधादिका स्तम्भन करे ।
आदौ नामनिवेशो दीपनमन्ते च पल्लवो ज्ञेयः । तन्मध्यगतं सम्पुटमथादिमध्यान्तगोरोधः ॥ २ ॥
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भा० टी० – मन्त्रकी आदिमें नाम रखना दीपन कहलाता है, अन्तमें रखना पल्लव कहलाता है । नामके आदि और अन्त में मन्त्रको रखना सम्पुट कहलाता है । मन्त्रके आदि, मध्य और अन्तमें नामको रखना रोधन कहलाता है ।
ग्रथनं वर्णान्तरितं द्वयक्षरमध्यस्थितो विदर्भः स्यात् । षट्कर्म करणमेतज्ज्ञात्वाऽनुष्ठानमाचरेन्मन्त्री || ३ ||
भा० टी० - मन्त्र के एक एक अक्षरके पश्चात् नामको रखकर गून्थ देना ग्रथन कहलाता है। दो दो अक्षरों के पश्चात् नामको रखना विदर्भ कहलाता है । यह षटकर्म हैं । मन्त्री इनको जानकर ही अनुष्ठानको आरम्भ करे ।
मन्त्रोंकी सामान्य साधनविधि
दिक्कालमुद्रासनपल्लवानां भेदं परिज्ञाय जपेत्स मंत्री ।
न चान्यथा सिध्यति तस्य मन्त्रं कुर्वन्सदा तिष्ठतु जाप्यहोमम् ॥४॥ भा० टी० - मन्त्री दिशा, काल, मुद्रा, आसन और पल्लबों के भेदको जानकर ही जप आरम्भ करे, अन्यथा चाहे कितना ही जप और होम करे, सिद्धि नहीं होती ।
वश्याकृष्टस्तम्भन निषेध विद्वेष चलनशांतिपुष्टिः ।
कुर्यात्सोमय मामरहरानिमरुद विनिरितिदिग्वदनः ॥ ५ ॥
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