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(२) सौधर्म देवलोक में :
धनमुनि और धनवती दोनों आयु पूर्णकर प्रथम सौधर्म कल्प में शक के सामानिक महधिक देव हुए । २१ धनमुनि के दोनों भाई भी महान् साधना कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुए । २२
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
(३) चित्रगति और रत्नवती :
प्रस्तुत भरत क्ष ेत्र के वैताद्यगिरि की उत्तरश्रेणी में सूरतेज नामक नगर था। वहां पर सूर नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । २३ विद्युन्मति उस चक्रवर्ती की महारानी थी । २४ एक दिन धनकुमार का जीव सौधर्म देवलोक का आयु पूर्ण कर विद्यन्मति की कुक्षि में आया । शुभ दिन जन्म लेने पर बालक का नाम चित्रगति रखा गया । २५
वैतादयगिरि की दक्षिण श्रेणी में शिवमन्दिर नामक नगर था । वहां का राजा अनंगसिंह था । रानी का नाम शशिप्रभा था । धनवती का जीव सौधर्म देवलोक की आयु पूर्ण कर वहां पर उत्पन्न
२१. ( क ) मासान्ते तौ विपद्योभौ कल्पे सौधर्मनामनि । शकसामानिको देवावजायेतां महद्धिकौ ||
(ख) इअ दुन्नि वि पवज्जं काऊणं अणसणं च अकलंकं । सोहम्मे सामाणिअदेवा जाया महिड्ढीआ ||
२२. (क) त्रिषष्टि० ८।१३६
(ख) भव-भावना ४५८ २३. इतोऽत्र भरते वैताढ्योत्तरश्रेणिभूषणे । सूरतेज: पुरे सूर इति खेचरचयप्रभु ॥
— त्रिषष्टि० ८।१।१३५
-भव-भावना ४५७, पृ० २६
२४. वहीं ८।१।१३८
२५. पुण्येऽहनि ददौ चित्रगतिरित्यभिधां पिता ॥
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-- त्रिषष्टि० ८।१।१३७
— त्रिषष्टि० ८|१|१४१
(ख) चित्तगइत्ति पट्ठिअमिस्स नामं विभूईए ।
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- भव-भावना ४७५
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