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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
जीव भी देवलोक से आयु पूर्ण कर चित्रगति के मनोगति और चपलगति नामक दो भाई बने । सभी आनन्दपूर्वक रहने लगे । ४५
एक दिन चक्रवर्ती ने चित्रगति को राज्य दिया और जैनेन्द्री दीक्षा ग्रहण की । उत्कृष्ट चारित्र की आराधना कर वे कर्म मुक्त हुए ।४६
चित्रगति का एक सामन्त राजा था, जिसका नाम मणिचूल था । उसके शशी और शूर नामक दो पुत्र थे। दोनों पिता के निधन के पश्चात् राज्य के लिए परस्पर लड़ने लगे । तब चित्रगति ने राज्य को दो भागों में बांट दिया, किन्तु उन दोनों के मन का समाधान न हो सका । कुछ दिनों के पश्चात् वे पुनः राज्य के लिए लड़ने लगे और दोनों ही मृत्यु को प्राप्त हुए । ४७
चित्रगति को जब यह वृत्त ज्ञात हुआ तब उसे मानव की मूढ़ता का विचार आया। रत्नवती के पुत्र पुरन्दर को राज्य देकर रत्नवती और अपने दोनों भ्राताओं के साथ उसने दमधर आचार्य के निकट संयम स्वीकार किया । जीवन की सांध्यवेला तक उत्कृष्ट तप की आराधना करते रहे और अन्त में पादपोपगमन संथारा कर आयु पूर्ण किया । ४९
४५. धनदेवधनदत्तजीवौ च्युत्वा बभूवतुः । मनोगतिचपलगत्याख्यौ तस्यानुजावुभौ ॥
४६. तमन्यदा न्यधाद्राज्ये सूरचकी स्वयं पुनः । उपाददे परिव्रज्यां प्रपेदे च परं पदम् ||
-- त्रिषष्टि० ८।१।२४७
— त्रिषष्टि० ८।१।२५०
४७. त्रिषष्टि० ८।१।२५३-२५४ ४८. श्रुत्वा चित्रगतिस्तच्च दध्याविति महामतिः । विनश्वर्याः श्रियोऽर्थेऽमी धिग्जना मन्दबुद्धयः । युध्यन्तेऽथ विपद्यन्ते निपतंति च दुर्गतौ ।
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- त्रिषष्टि० ८।१-२५४, २५५
४६. विमृश्यैवं भवोद्विग्नः सुतं रत्नवती भवम् । ज्येष्ठं पुरंदरं नाम राज्ये चित्रगतिर्न्यधात् ॥
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