Book Title: Bhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 437
________________ पारिभाषिक शब्द-कोश : परिशिष्ट ४ ४०५ पश्चात् दीक्षा लेकर घोर तपस्या करके आत्म-साधना करते हैं। कुछ बलदेव मोक्षगामी होते हैं, पर ये कृष्ण के भ्राता बलदेव स्वर्ग में गये । बेला-दो दिन का उपवास, षष्ठभक्त । ब्रह्मलोक-पाँचवां स्वर्ग भक्त प्रत्याख्यान-जीवन पर्यन्त तीन व चार प्रकार के आहार का त्याग करना। भव्य-मोक्ष प्राप्ति की योग्यता वाला जीव ।। मतिज्ञान-इन्द्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होने वाला ज्ञान । मनः पर्यव-मनोवर्गणा के अनुसार मानसिक अवस्थाओं का ज्ञान । महाप्रतिमा-साधु के अभिग्रह विशेष को महाप्रतिमा कहते हैं। प्रतिमा १२ प्रकार की हैं। बारहवीं प्रतिमा एक रात्रि की होती है। जिसमें शमशान आदि में जाकर एकाग्रभाव से आत्मचिन्तन करना होता है । मासखमण-एक महीने का उपवास । माण्डलिक राजा-एक मण्डल का अधिपति राजा । मानसिक भाव-मनोगत विचार मुक्त-सम्पूर्ण कर्म क्षय कर जन्ममरण से रहित होना । मेरुपर्वत की चलिका-जम्बूद्वीप के मध्य भाग में एक लाख योजन समुन्नत व स्वर्ण कान्तिमय यह पर्वत है। इसी पर्वत पर चालीस योजन की चोटी है । इसी पर्वत पर भद्रशाल, नन्दन, सौमनस, और पाण्डुक नामक चार वन हैं । भद्रशाल वन धरती की बराबरी पर पर्वत को घेरे हुए है । पाँच सौ योजन ऊपर नन्दनवन है, जहां क्रीडा करने के लिए देवता भी आया करते हैं । बासठ हजार पाँच सौ योजन ऊपर सौमनस वन है । चूलिका के चारों ओर फैला हुआ पाण्डुक वन है । उसी वन में स्वर्णमय चार शिलाएँ हैं जिन पर तीर्थंकरों के जन्म महोत्सव होते हैं । मोक्ष-सर्वथा कर्म-क्षय के अनन्तर आत्मा का अपने स्वरूप में अधिष्ठान । योग-मन, वचन और काया की प्रवृत्ति । योजन- चार कोश । रजोहरण-जैन श्रमणों का उपकरण विशेष जो भूमि आदि प्रमार्जन के काम में आता है। लब्धि-तपश्चर्या आदि से प्राप्त होने वाली विशिष्ट शक्ति । लब्धिधर-विशिष्ट शक्तिसम्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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