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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
- विद्याधर ने यशोमती से कहा-बहुत अच्छा हुआ, देखो यह शंखकुमार भी यहाँ आगया है। अब मैं तुम्हारे सामने ही इसे मार कर विवाह करूगा ।१९ शंखकुमार भी तैयार था। दोनों का परस्पर युद्ध हुआ किन्तु अन्त में शंखकुमार ने विद्याधर को परास्त कर दिया। छाती में बाण लगने से विद्याधर भूमि पर मूच्छित होकर गिर पड़ा। शंखकुमार ने उसे उपचार कर पुनः सचेत किया
और पूनः यद्ध करने को आमंत्रण दिया,२० पर वह बोला-तुमने मुझे ही नहीं, मेरे हृदय को भी जीत लिया है।
शंखकुमार, धायमाता यशोमती और विद्याधर को लेकर जितारि राजा के पास गया । जितारि राजा के आग्रह से यशोमती व अन्य अनेक विद्याधर कुमारियों के साथ विवाह कर शंख हस्तिनापुर आया और पिता से मिला ।२५ .. अपराजितकुमार के भव में सूर और सोम नाम के उनके दो भाई थे। वे भी आरण स्वर्ग की आयु पूर्ण कर शंखकुमार के यशोधर और गुणभद्र नामक लघु भ्राता बने । श्रीधर राजा ने भी शंखकुमार को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की ।२२ - एक दिन हस्तिनापुर में श्रीषेण केवलज्ञानी भगवान् पधारे। शंखकुमार ने उनसे पूछा-यशोमती 'पर सहज रूप में मेरा इतना अनुराग कैसे है ?२३
१८. एकस्मिन् गह्वरे तस्य तां सोऽपश्यद्यशोमतीम् ।
विवाहायार्थयन्तं च खेचरं ब्रुवतीमिति । शंखोज्ज्वलगुणः शंखो भर्ता मे नापरः पुनः । अप्रार्थितप्रार्थक रे! संखेदयसि किं मुधा ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।४६१-४६२ १९. त्रिषष्टि० ८।१।४६३-४६४ २०. त्रिषष्टि० ८।११४६६-५०० २१. त्रिषष्टि० ८।११५०४-५१८ २२. श्रीषेण राजाप्यन्येद्य दत्वा शंखाय मेदिनीम् । गुणधरगणधरपादान्ते व्रतमाददे ॥
-त्रिषष्टि० ८।११५२० २३, त्रिषिष्ट० ८।११५२२-५२५
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