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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
उत्तराध्ययन" और दशवैकालिक में उनका कुल अंधकवृष्णि भी लिखा है । अंधक - वृष्णि कुल उन दोनों भाइयों के संयुक्त नाम से चलता था ।
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उत्तरपुराण में 'अंधकवृष्टि' शब्द प्रयुक्त हुआ है जो एक ही व्यक्ति का नाम है । कुशार्थं ( कुशार्त) देश के सौर्यपुर के स्वामी शूरसेन के शूरवीर नामक पुत्र हुआ । उसके दो पुत्र हुए अंधकवृष्टि और नरवृष्टि । समुद्रविजय प्रभृति अंधकवृष्टि के दस पुत्र थे । २९ संक्षेप में उत्तरपुराण के अनुसार उनका वंश इस प्रकार है 130
- ( देखिए सारणी)
२५. ( क ) नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वहिपुंगव ।
(ख) अहं च भोगरायस्स तं चऽसि अंधगवहिणो ।
— उत्तराध्ययन अ० २२, गा० १३
- उत्तराध्ययन २२१४४
२६. ' वृष्णिपु' गव' : यादवप्रधानो भगवानरिष्टनेमिरितियावत् । - उत्तराध्ययन वृहद्वृत्ति | पत्र० ४६०
२७. उत्तराध्ययन अ० २२, गा० ४३ २८. दशवैकालिक २८
तद्वशाम्बरभास्वतः ।
२६. तदा कुशार्थविषये, अवार्यनिजशौर्येण,
निर्जिताशेषविद्विषः ॥
ख्यात शौर्यपुराधीश
सूरसेनमहीपतेः ।
सुतस्य शूरवीरस्य, धारिण्याश्च तनूद्भवो ॥ विख्यातोऽन्धकवृष्णिश्च पतिर्वृष्टिर्नरादिवाक् ॥
३०. उत्तरपुराण ७०1६३-१००
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- उत्तरपुराण ७०1६२-६४
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