Book Title: Bhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 408
________________ ३७६ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण और (३) दक्षिण पांचाल | १५८ महाभारत के अनुसार गंगानदी पांचाल को दक्षिण और उत्तर में विभक्त करती थी । एटा और फर्रुखाबाद के जिले दक्षिण पांचाल के अन्तर्गत आते थे । यह भी ज्ञात होता है कि उत्तर पांचाल के भी पूर्व और अपर ये दो विभाग थे । दोनों को रामगंगा विभक्त करती थी । अहिच्छत्रा उत्तरी पांचाल तथा काम्पिल्य दक्षिणी पांचाल की राजधानी थी । १५९ 1 कांपिल्यपुर गंगा के किनारे पर अवस्थित था । १६° यहीं पर द्रौपदी का स्वयंवर रचा गया था । इन्द्र महोत्सव भी यहां उल्लास के साथ मनाया जाता था । माकंदी दक्षिण पांचाल की दूसरी राजधानी थी। यह व्यापार का मुख्य केन्द्र था । समराइच्चकहा में हरिभद्रसूरि ने इस नगरी का वर्णन किया है । १६१ T कान्यकुब्ज (कन्नौज) दक्षिण पांचाल में पूर्व की ओर अवस्थित था । इसे इन्द्रपुर, गाधिपुर, महोदय और कुशस्थल १६२ आदि नामों से भी पहचाना जाता था। सातवीं शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी तक कान्यकुब्ज उत्तर भारत के साम्राज्य का केन्द्र था। चीनी यात्री हुएनसांग के समय सम्राट् हर्षवर्धन वहां के राजा थे । उस समय वह नगर शूरसेन के अन्तर्गत था । द्विमुख, जो प्रत्येक बुद्ध था, पाञ्चाल का प्रभावशाली राजा था । १६३ प्रभावकचरित्र के अनुसार पाञ्चाल और लाटदेश कभी एक शासन के अधीन भी रहे हैं । १६४ बौद्ध साहित्य में पाञ्चाल का उल्लेख सोलह महाजनपदों में १५८. पाणिनी व्याकरण ७।३।१३ १५६. स्टडीज इन दि ज्योग्रफि ऑव एन्शियन्ट एण्ड मेडिवल इण्डिया पृष्ठ ६२ १६०. औपपातिक सूत्र ३६ १६१. समराइच्चकहा - अध्याय ६ १५२. अभिधानचिन्तामणि ४१३६-४० १६३. उत्तराध्ययन- - सुखबोधा पत्र १३५-१३ १६४. प्रभावक चरित पृ० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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