Book Title: Bhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 415
________________ भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १ ३८३ १९२ या मधुवन से पृथक् बताया है । आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो कृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बन्धित है, व्रज कहलाता है | भागवत में 'ब्रज' शब्द क्षेत्रवाची अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है । 193 वहां इसे एक छोटे ग्राम की सज्ञा दी गई है । उसमें पुर से छोटा ग्राम और उससे भी छोटी बस्ती को व्रज कहा गया है। १९४ १६वीं शताब्दी में 'ब्रज' प्रदेशवाची होकर 'व्रजमण्डल' हो गया है और तब इसका आकार ८४ कोस का माना जाने लगा था । १५ उस समय मथुरा नगर ब्रज में सम्मिलित नहीं माना जाता था । सूरदास आदि कवियों ने ब्रज और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है। वर्तमान में मथुरा नगर सहित मथुरा जिले का अधिकांश भाग तथा राजस्थान के डीग और कामबन ( कामा) का कुछ भाग, जहां होकर ब्रज यात्रा जाती है, 'व्रज' कहा जाता है । इस समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम मधुवन, शूरसेन, मधुरा, मधुपुरी, मथुरा और मथुरामंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रज मण्डल है । यद्यपि इनके अर्थबोध एवं आकार प्रकार में समयसमय पर अन्तर होता रहा है । ११. ( क ) वका विदारि चले 'ब्रज' को हरि - सूरसागर पद सं० १०४७ (ख) ब्रज में बाजति आज बधाई । -- परमानन्द सागर पद सं० १७ (ग) चौरासी वैष्णव की वार्ता, पृ० ६ (घ) सो अलीखान 'ब्रज' देखिकै बहोत प्रसन्न भए । दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता, प्र० खण्ड पृ० २६६ १२. आतुर रथ हांक्यो मधुवन को, 'ब्रज' जन भये अनाथ | - सूरसागर पद ३६११ Jain Education International १३. श्रीमद्भागवत, १०1१1८-६ १९४. शिथुश्चकार निघ्नन्ती पुरग्रामब्रजादिषु १६५. आइ जुरे सब ब्रज के वासी । डेरा परे कोस चौरासी || - भागवत १०।६।२ -- सूरसागर १५२३, ( ना० प्र० सभा) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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