________________
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
नेमिकूमार वैराग्य का कुछ कारण पाकर भोगों से विरक्त हो जायेंगे। ऐसा सोचकर वे वैराग्य का कारण जुटाने का प्रयास करने लगे। उनकी समझ में एक उपाय आया। उन्होंने शिकारियों द्वारा अनेक मगों को पकड़वाया और उन्हें एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया। चारों ओर वाडा बनवा दिया। वहाँ रक्षक नियुक्त कर दिये। उन रक्षकों से कह दिया कि अरिष्टनेमि कुमार दिशाओं का अवलोकन करने के लिए आए और इन भगों के समूह के सम्बन्ध में पूछे तो उनसे स्पष्ट कह देना कि आपके विवाह में मारने के लिए चक्री ने यह मृगों का समूह एकत्र किया है ।८२
एक दिन अरिष्टनेमि चित्रा नाम की पालकी में बेटकर दिशाओं का अवलोकन करने के लिए निकले । उन्होंने घोर करुण-स्वर में आक्रोश करते और इधर उधर भगाते हुए, प्यासे, दीन दृष्टि से युक्त, तथा भय से व्याकुल मृगों को देखा। दयावश वहाँ के रक्षकों से पूछा-पशुओं का यह इतना बड़ा समूह एक स्थान पर क्यों, किसलिए रोका गया है ?८3
रक्षकों ने उत्तर में कहा-देव। आपके विवाहोत्सव में जो
८२. निर्वेदकारणं किञ्चिनिरीक्ष्यष विरंस्यति ।
भोगेभ्य इति सञ्चित्य तदुपायविधित्सया ॥ व्याधाधिपै तानीतं
नानामृगकदम्बकम् । विधायैकत्र सङ्कीर्णा वृति तत्परितो व्यधात् ।। अशिक्षयच्च तद्रक्षाध्यक्षान्यदि समीक्षितुम् । दिशो नेमीश्वरोऽभ्येति भवद्भिः सोऽभिधीयताम् । त्वद्विवाहे व्ययीक चक्रिणेष मृगोत्करः । समानीत इति व्यक्तं महापापोपलेपकः ॥
-उत्तरपुराण ७१।१५४-१५७, पृ० ३८५ ८३. (क) किमर्थमिदमेकत्र निरुद्ध तृणभुक्कुलम् । इत्यन्वयुङ क्त तद्रक्षानियुक्ताननुकम्पया ।
-उत्तरपुराण ७१।१६० से १६१ (ख) लघु निरुध्य रथं सहि सारथिं निजनिनादजिताम्बुदनिस्वनः । अपि विदन्नवदन्मृगजातयः किमिह रोधमिमा: प्रतिलम्भिताः ।।
-हरिवंशपुराण ५५।८६, पृ० ६२६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org