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जन्म एवं विवाह प्रसग
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इस प्रकार सोरियपुर में द्वैध- राज्य प्रणाली प्रचलित थी । जिसे अंधक - वृष्णियों के संघ- राज्य
'विरुद्ध राज्य' भी कहा जाता था ।" का उल्लेख पाणिनि ने भी किया है ।
जन्म :
अर्हत् अरिष्टनेमि का जीव अपराजित महाविमान में बत्तीस सागरोपम का आयुष्य भोगकर वर्षाऋतु के चतुर्थमास अर्थात् कार्तिक मास की कृष्णा त्रयोदशी के दिन व्यवकर माता शिवादेवी की कुक्षि में आया । उस समय रात्रि के पूर्व और अपर भाग की सन्धि वेला थी । चित्रा नक्षत्र का योग था ।
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आचार्य जिनसेन ४ और गुणभद्र ५ का मन्तव्य है कि कार्तिक शुक्ला षष्ठी के दिन भगवान् स्वर्ग से च्युत होकर गर्भ में आये थे ।
१०. सोरियपुरंमि नयरे, आसी राया समुद्दविजओत्ति । तस्सासि अग्गमहिसी, सिवत्ति देवी अणुज्जंगी ॥ तेसिं पुत्ता चउरो अरिट्ठनेमि तहेव रहने मी । तइओ अ सच्चनेमी, चउत्थओ होइ दढनेमि ॥ जो सो अरिनेमी, बावीसइमो अहेसि सो अरिहा । रहनेमि सच्चनेमी, एए पत्तयबुद्धा उ 11
११. आचारांग २|३|१|१६६; २।११।१ । ४४१
१२. अष्टाध्यायी ( पाणिनी ) ६०२१३४
- उत्तराध्ययननियुक्ति गा० ४४३-४४५
१३. (क) कल्पसूत्र, सूत्र १६२, देवेन्द्रमुनि सम्पादित पृ० २२७
(ख) भव-भावना
१४. अनन्तरं
स्वप्न गणस्य कम्पयन् । सुरासनान्या विशदम्बिकाननम्
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सितेभरुपो भगवान् दिवश्च्युतः ।
प्रकाशयन्
कार्तिक शुक्ल षष्ठिकाम् ॥
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- हरिवंशपुराण ३७, श्लोक २२, पृ० ४७३
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