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________________ जन्म एवं विवाह प्रसग ७३ इस प्रकार सोरियपुर में द्वैध- राज्य प्रणाली प्रचलित थी । जिसे अंधक - वृष्णियों के संघ- राज्य 'विरुद्ध राज्य' भी कहा जाता था ।" का उल्लेख पाणिनि ने भी किया है । जन्म : अर्हत् अरिष्टनेमि का जीव अपराजित महाविमान में बत्तीस सागरोपम का आयुष्य भोगकर वर्षाऋतु के चतुर्थमास अर्थात् कार्तिक मास की कृष्णा त्रयोदशी के दिन व्यवकर माता शिवादेवी की कुक्षि में आया । उस समय रात्रि के पूर्व और अपर भाग की सन्धि वेला थी । चित्रा नक्षत्र का योग था । / आचार्य जिनसेन ४ और गुणभद्र ५ का मन्तव्य है कि कार्तिक शुक्ला षष्ठी के दिन भगवान् स्वर्ग से च्युत होकर गर्भ में आये थे । १०. सोरियपुरंमि नयरे, आसी राया समुद्दविजओत्ति । तस्सासि अग्गमहिसी, सिवत्ति देवी अणुज्जंगी ॥ तेसिं पुत्ता चउरो अरिट्ठनेमि तहेव रहने मी । तइओ अ सच्चनेमी, चउत्थओ होइ दढनेमि ॥ जो सो अरिनेमी, बावीसइमो अहेसि सो अरिहा । रहनेमि सच्चनेमी, एए पत्तयबुद्धा उ 11 ११. आचारांग २|३|१|१६६; २।११।१ । ४४१ १२. अष्टाध्यायी ( पाणिनी ) ६०२१३४ - उत्तराध्ययननियुक्ति गा० ४४३-४४५ १३. (क) कल्पसूत्र, सूत्र १६२, देवेन्द्रमुनि सम्पादित पृ० २२७ (ख) भव-भावना १४. अनन्तरं स्वप्न गणस्य कम्पयन् । सुरासनान्या विशदम्बिकाननम् || सितेभरुपो भगवान् दिवश्च्युतः । प्रकाशयन् कार्तिक शुक्ल षष्ठिकाम् ॥ Jain Education International - हरिवंशपुराण ३७, श्लोक २२, पृ० ४७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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