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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
प्रस्तूत जनपद पश्चिमी तट के कुशार्त से भिन्न है। यह नगर यमना के तट पर अवस्थित था ।४ सोरिक (सोरियपुर) नारद की जन्म भूमि थी।" सूत्रकृताङ्ग में एक लोरी' में अनेक नगरों के साथ 'सोरियपर' का भी उल्लेख हआ है। वर्तमान में इसकी पहचान आगरा जिले में यमुना नदी के किनारे बटेश्वर के पास आये हए 'सर्यपर' या 'सरजपूर' की जाती है। प्राचीन तीर्थमाला के अनुसार आगरा जिले के शिकुराबाद स्टेशन से यहाँ पहुँचा जाता है।
भगवान् अरिष्टनेमि ने जिस समय सोरियपुर में जन्म लिया उस समय वहाँ द्वध राज्य था । एक ओर वष्णिकूल के नेता वसुदेव राज्य करते थे। उनकी दो रानियां थीं-एक का नाम रोहिणी और दूसरी का नाम देवकी था। रोहिणी के पुत्र बलराम थे, देवकी के पुत्र 'केशव' थे।
दूसरी ओर अन्धककूल के नेता समुद्रविजय राज्य करते थे, उनकी पटरानी का नाम शिवा था। उनके चार पत्र थे-अरिष्टनेमि, रथनेमि सत्यने मि, और दृढ़नेमि । अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थकर हुए और रथने मि सत्यनेमि प्रत्येक बुद्ध हुए।
४. विपाकसूत्र ८, पृ० ४५ ५. आवश्यक चूणि, उत्तरभाग, पृ० १६४ ६. (क) सूत्रकृताङ्ग वृत्ति, पत्र ११६
(ख) उत्तराध्ययन--एक समीक्षात्मक अध्ययन पृ० ३७२ ७. कालक कथा संग्रह, उपोद्घात पृ० ५२ ८. (क) प्राचीन तीर्थमाला भाग १, भूमिका पृ० ३८
(ख) गजेटियर ऑव आगरा पृ० १३७, २३६ A उत्तराध्ययन (मूल-अर्थ) तेरापंथी महा सभा, कलकत्ता ६. सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए ।
वसुदेवे ति नामेणं रायलक्खणसंजुए। तस्स भज्जा दुवे आसो रोहिणी देवई तहा । तासि दोण्हं पि दो पुत्ता इट्ठा राम केसवा ।।
-उत्तराध्ययन २२, गा० १-२
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